पिछले कुछ समय से जैसे जैसे रुपए की कीमत नीचे गई है। देश का हर व्यक्ति अगले अर्थशास्त्र के नोबेल के लिए नामांकित होता दिखा है। कुछ बातें है मेरे मन की उपज ज़रा गौर फरमा लें।
क्या हमारे देश में अर्थशास्त्र जैसे महत्व पूर्ण विषय पर कभी ध्यान दिया गया ।बात सरकारी प्रयासों की नही बड़े बड़े पब्लिक स्कूल से ले कर सरकारी विद्यालय की भी।
सब से ज्यादा नंबर लाने वाले छात्र गणित पढ़ते है ताकि माइक्रोसॉफ्ट, गूगल, फेसबुक के लिए कोड छाप सकें
फिर बारी आती है बायोलॉजी की ताकि हम alopathy दवा की कमीशन का बंदरबांट कर सकें
फिर commerce जो सब कुछ बेच सकें
जो इनमे से कुछ न कर पाए वो ठूंस दिए जाते हैं आर्ट्स के नाम पर। अगर कोई टॉपर कहे वो इकोनॉमिक्स आगे पढना चाहता है तो घर में थर्ड वर्ल्ड वॉर होगा,
आज भी टीचर बनने की बात करना और काम न करना बराबर ही हैं
अब जब आपकी सबसे अच्छी प्रतिभा उन विषयों का क ख ग भी नहीं जानती जो देश की दिशा को तय करें तो दोष अकेले मनमोहन जी का नहीं है
मैकाले की जो सोच थी क्लर्क और सिपाहियों का देश बनाने की हम आज भी उससे उभरे नहीं है और ना उभरेंगे
चलते चलते
अजब तमाशा है इस दश्त का अनिमेष
यहाँ रब भी हुलिए से पहचाना जाता है